कथक नृत्य परंपरा के एक युग का अंत…!

17 Jan 2022 14:04:55

कहते हैं, कुछ लोग अमर होते हैं | वे शरीर से भले ही इस संसार का एक हिस्सा ना रहें, लेकिन उनकी कला और उनकी महानता उन्हें अमर कर देती है | आज वैसा ही कुछ महसूस हो रहा है | कथक नृत्य के परमगुरु माने जाने वाला, लखनऊ घराने के प्रमुख पंडित बिरजू महाराज जी का आज ८४ वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया | और मानो कथक नृत्य परंपरा के एक संपूर्ण युग का ही अंत हो गया | ‘कालका - बिंदादीन’ घराने की विरासत आगे बढाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के जाने से संपूर्ण कला जगत मानो सूना हो गया है | उनके द्वारा किया गया काम, उनकी कला, और भारतीय कला को संपूर्ण जगत में पँहुचाने की हर संभव कोशिश हम सभी को सदैव याद रहेगी |


maharaj ji


कहते हैं, एक सच्चे कलाप्रेमी की कला आने वाली कई पिढीयों तक जीवित रहती है | महाराज जी इसका एक जीता जागता उदाहरण हैं | उन्होंने ना केवल लखनऊ घराने की प्रतिभा आगे बढाई बल्कि, नयी रचनाओं के निर्माण से नयी पीढि से भी लखनऊ घराने के कथक को जोडा | पंडित जी की रचनाएँ अजरामर हैं |


पंडित बिरजू महाराज जी का जन्म ४ फरवरी १९३८ को ‘कालका - बिंदादीन’ के नाम से जाने जाने वाले कथक के सुप्रसिद्ध ‘लखनऊ’ घराने में हुआ | और इस घराने की विरासत को दुनिया तक पँहुचाने वाले वारिस का आगमन हुआ | पंडित जी का संपूर्ण नाम ‘बृजमोहन दास मिश्रा’ है, जो आगे जाकर ‘बिरजू’ और फिर ‘बिरजू महाराज’ हो गया | उनके पिता कथक घराने के प्रसिद्ध गुरु ‘अच्छन महाराज’ हैं | तीन वर्ष की उम्र से ही ‘पूत के पाँव पालने में’ नजर आने लगे, और कथक के क्षेत्र में बिरजू महाराज जी ने अपना पहला कदम रखा, और फिर कभी भी पीछे मुड कर नहीं देखा |

बचपन से मिली संगीत व नृत्य की घुट्टी के दम पर बिरजू महाराज ने विभिन्न प्रकार की नृत्यावलियों जैसे गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग बहार इत्यादि की रचना की। सत्यजीत राॅय की फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' के लिए भी इन्होंने उच्च कोटि की दो नृत्य नाटिकाएं रचीं। इन्हें ताल वाद्यों की विशिष्ट समझ थी, जैसे तबला, पखावज, ढोलक, नाल और तार वाले वाद्य वायलिन, स्वर मंडल व सितार इत्यादि के सुरों का भी उन्हें गहरा ज्ञान था।

महाराज जी १३ साल की उम्र से ही दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देने लगे थे | आज पंडित जी अनेक एकलव्यों के गुरु हैं, जो उनकी कला को देख देख कर सीखे हैं | पंडित जी के पाँच बच्चे हैं, जिनमें दो बेटियाँ और तीन बेटे हैं | और उनके पुत्र ममता महाराज, जयकिशन महाराज और दीपक महाराज कथक के क्षेत्र में पंडित जी का और लखनऊ घराने का नाम रौशन कर रहे हैं |

पंडित जी को १९८६ में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया, इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और कालीदास सम्मान से भी विभूषित किया गया है |

पंडित जी नहीं रहे, लेकिन आने वाली पिढी के लिये अपनी कला की विरासत छोड गए हैं | उनकी कला और उनकी अमर रचनाएँ आने वाले समय में पंडित जी को हम सब के भीत जिंदा रखेंगी |

- निहारिका पोल सर्वटे 


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