हम ९०’s के बच्चे (जो कि अब बच्चे नहीं हैं…!) कुछ फिल्मों से अलग ही तरह से जुडे हैं | जिनमें हम आपके हैं कौन, हम दिल दे चुके सनम, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएँगे, मोहोब्बतें, आदि शामिल हैं, इन्हीं में से एक खास फिल्म है, “देवदास” | जी हाँ मैं संजय लीला भंसाली कि फिल्म “देवदास” की बात कर रही हूँ | आज इस फिल्म को १९ साल पूरे हुए हैं | लेकिन आज भी इस फिल्म की हर बात खास है, और सबसे ज्यादा खास हैं इसके गाने |
देवदास फिल्म से खास जुडाव होने का सबसे बडा कारण है इसका संगीत | इस फिल्म के संगीत निर्देशक हैं, इस्माइल दरबार | क्या गाने थे इस फिल्म के | और इस फिल्म के संगीत ने बॉलिवुड को सबसे बडा संगती नजराना दिया, और वो हैं, “श्रेया घोषाल” | ऐश्वर्या को आवाज देने वाली श्रेया आज बॉलिवुड की प्रमुख गायिका के नाम से जानी जाती हैं, वो हमें इसी फिल्म के कारण मिल सकीं |
आज भी जब भी “सिलसिला ये चाहत का” गाना बजता है, तो पुराने स्कूल के दिन याद आ जाते हैं, जब हम सहेलियाँ इस गाने को लेकर घंटों बातें किया करते थे, इस गाने पर दिया लेकर नृत्य करने का प्रयास करते थे | आज भी यदि घर पर कोई भाई बहन हरे रंग के कपडे पहन कर आता है, तो उसे चिढाने के लिये हम सब चालू हो जाते हैं, ‘हम पे ये किसने हरा रंग डाला..!” आज भी कथक की बात की जाती है, और बॉलिवुड में पं. बिरजू महाराज के योगदान की बात होती है, तो “धाए श्याम रोक लई” गाना सबसे पहले याद आता है | इस फिल्म का संगीत अलग था, जिसका जादू आज तक टिका है |
संगीत के साथ ही इस फिल्म को खास बना दिया फिल्म के कलाकारों में “फिर वो चुन्नी बाबू हों या दादी मां, जमींदार होकर भी उसका गुरूर न करने वाला शाहरुख याने कि देवा हो या फिर दिया हाथ में लेकर उसकी राह तकती बेहद खूबसूरत, लंबे घने बालों वाली पार्वती, मयखाने में देवा का खयाल रखती सभी के दिल की “धक धक” माधुरी याने कि चंद्रमुखी हो या फिर अपनी कपटी नजरों से गुस्सा दिलाने वाले मिलींद गुणाजी, सभी का किरदार खास था, अलग था, अपने आप में एक छाप छोडने वाला था |
देवदास की कहानी वैसे तो सबको पता थी, लेकिन पार्वती और चंद्रमुखी के हँसते खेलते एक साथ नृत्य करते “डोला रे डोला” ने इस कहानी में एक ट्विस्ट अवश्य दिया था | माधुरी कि अदाएँ और ऐश्वर्या का खूबसूरत भोला सा अभिनय एक साथ देखना हमारे लिये उस वक्त बडी बात थी |
देवदास को १९ साल हो गए, हम भी बडे हो गए | तब गानें कसेट्स में सुनते थे, और उसका मजा ही कुछ और होता था | २००२ में आई यह फिल्म देखकर आज भी लगता है, मानों कल की ही तो बात है, जब पहली बार डोला रे डोला सुना था | वक्त को बीतते वक्त नहीं लगता, लेकिन कुछ कलाकृतियाँ मन में घर कर जाती हैं, जो हमेंशा वहीं रहती हैं, उसी तरह महफूज | और देवदास उन्हीं में से एक है |
- निहारिका पोल सर्वटे