आप सभी को अपना बचपन याद है ? स्कूल का समय ? आप में से कितने लोग हैं, जो पाठशाला में अपनी मातृभाषा या अपनी परिचय की भाषा में पढे हैं ? यदि आपकी पढाई आपकी मातृभाषा या आपकी सर्वाधिक परिचय की भाषा में हुई है, तो आप अवश्य ही इसका महत्व जानते होंगे | रीसर्च कहता है कि यदि आपकी पढाई आपकी मातृभाषा में हुई है, तो आप की Understansding Power अर्थात समझने की क्षमता मातृभाषा में न पढने वालों से ७८% तक अधिक है | 78% यह एक बहुत बडा नंबर है |
जब आप किसी बच्चे से उस भाषा में बात करते हैं, जिसे वह सबसे अच्छे से समझ सकता है, वह आपसे अधिक खुल कर बात करता है | यही सूत्र उस बच्चे की पढाई पर भी लागू होता है, अपनी भाषा में कोई भी बात अच्छे से समझ आती है | इसीलिये आज ग्लोबल पैमाने पर भी माइग्रेशन बढ रहा है, अर्थात लोग अलग अलग देशों में जाकर रह रहे हैं, इसलिये बडे बडे आंतरराष्ट्रीय स्कूल्स भी अब मातृभाषा और अलग अलग भाषाओं में शिक्षा व्यवस्था लाने का प्रयत्न कर रहे हैं | ऐसे में हम भारतीय आज भी अंग्रेजी माध्यम और उनके हाई फाई कॉन्व्हेंट कल्चर पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, और उनकी मोह माया में फँसे हैं | आज भी भारत में अंग्रेजी भाषा का हौवा बना कर रखा गया है, और उसी भाषा में शिक्षा व्यवस्था पर जोर दिया जाता है | लेकिन रीसर्च कहता है, कि यदि आप मातृभाषा में शिक्षा देते हैं, तो बच्चे के मस्तिष्क का तीव्र विकास होता है, और वह अन्य क्षेत्रों में भी अधिक अच्छे से प्रदर्शन कर सकता है |
अंग्रेजी भाषा आना जरूरी है, इसमें कोई दोराय नहीं, लेकिन उसे केवल एक भाषा की तरह देखना चाहिये “स्टेटस सिंबल’ की तरह नहीं | इसीलिये आज के इस लेख में हम देखेंगे कि, अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण करना क्यों आवश्यक और महत्वपूर्ण है ?
१. मस्तिष्क के तीव्र विकास में सहायक : ऐसा कहते हैं, जब बच्चा भाषा से परिचित होता है, तो वह सबसे पहले वही भाषा सीखता है जो उसके घर में बोली जाती है | भारत जैसे बहुभाषीय देश में घर में बोली जाने वाली भाषा अलग अलग हो सकती है, वह हिंदी, मराठी, बंगाली, गुजराती, कन्नड, उडिया, मलयालन, तमिल, तेलगू, तुलु, काश्मीरी कुछ भी हो सकती है | ऐसे में यदि बच्चे को पाठशाला में भी उसकी मातृभाषा में पढाया जाए तो उसका दिमाग यह जानकारी अधिक अच्छे से ग्रहण कर सकेगा, और उसके मस्तिष्क का विकास तीव्र गति से होगा | Times of India की एक रिपोर्ट के अनुसार मस्तिष्क के विकास के शुरुआती दिनों में मस्तिष्क मातृभाषा में दिये गये निर्देश अधिक अच्छे से ग्रहण करता है, इसलिये यदि इस समय में प्रशिक्षण मातृभाषा में मिले तो बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में बहुत मदद मिलती है | बच्चे की ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ और ‘लॉजिकल थिंकिंग’ अधिक अच्छे से विकसित होती है |
२. अपनी संस्कृति की जानकारी अपनी भाषा में : आज भी जब आप ‘लो बसंत का मौसम आया खुशियाँ झोली भर कर लाया, हरियाली पेडों पर छाई, खेतों में फँसले मुस्काई’ यह पढते या सुनते हैं, तो आप इससे ज्यादा जुडाव महसूस करते हैं ? या फिर “Baba blackship have you any wool’ से ? अर्थात अपनी भाषा की कविताओं स, है ना ? उसका कारण है, मातृभाषा में लिखे गए साहित्य में उस वक्त के समाज, उस वक्त की संस्कृति, भारतीय पहचान की झलक देखने को मिलती हैं | इस साहित्य में वो सब होता है, जिसे हम वाकई में जीते हैं, इसलिये हम इससे ज्यादा जुडाव महसूस करते हैं | लेकिन जब आप किसी दूसरी भाषा (हमारे लिये अंग्रेजी भाषा) में पढते हैं, तो आप उससे जुडाव महसूस नहीं कर सकते, और उसे केवल पढने के हेतु से पढते हैं | एक भाषा के तौर पर यह सीखना या पढना आवश्यक है ही, लेकिन जब वही भाषा आपका माध्यम बन जाती है, तो आप हर विषय से आपका कनेक्ट खत्म हो जाता है | इसलिये अपनी भाषा में पढना आपके सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक होता है |
३. फॉरेन भाषा में पढने से कठिनाई में अधिकता : आप सोचिये भारत जैसे देश में, जहाँ अधिकर जनता घर में आज भी मातृभाषा बोलती है, वहाँ पाठशाला में अंग्रेजी माध्यम में पढने से कई बार बच्चे ठीक से समझ नहीं पाते, और उन्हें घर पर भी सपोर्ट नहीं मिल पाता, क्यों कि घर पर भी अंग्रेजी भाषा का ज्ञान या जानकारी नहीं होती, ऐसे में बच्चों को ट्यूशन, क्लासेस आदि पर निर्भर होना पडता है, जो कि उनके सर्वांगीण विकास में बाधक हो सकता है | वहीं यदि उन्हें मातृभाषा में शिक्षा मिले तो वे घर पर भी समस्याएँ सुलझा सकते हैं | वैसा न होने पर बच्चे में क्षमता होने के बावजूद भी वह सबसे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता, जो उसका आत्मविश्वास कम कर देता है | जिसका असर उसके सर्वांगीण विकास पर पडता है |
भारत में आज भी हिंदी माध्यम या फिर मातृभाषा में पढने वालों की ओर हीन दृष्टि से देखा जाता है, उन्हें कम आँका जाता है, यदि आप कॉन्व्हेंट से पढे हैं, तो आपका क्लास ऊपर का माना जाता है जो कि साफ गलत है, और ऐसी सोच भी छोटी सोच कहलाती है | कॉन्व्हेंट में पढना गलत नहीं, अंग्रेजी माध्यम में पढना गलत नहीं, लेकिन उसका हौवा बनाकर दूसरों को कम आंकना गलत है |
जर्मनी की पाठशालाओं यहाँ तक की वहाँ के बडे बडे महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में भी शिक्षा का प्रमुख माध्यम जर्मन भाषा है, चायना में चीनी भाषा और जापान में जॅपनीज | वहाँ मातृभाषा, या राष्ट्रभाषा ना जानने वालों को कम आँका जाता है, क्यों कि वह उनकी संस्कृति के खिलाफ है | वहाँ काम के सिलसिले में जाने पर य़ा पढाई के लिये जाने पर आपको वहाँ की भाषा सीखनी ही पडती है | हमारा देश बहुभाषीय है, और इसका सबसे बडा फायदा यह है कि यहाँ मराठी, हिंदी, गुजराती, बांग्ला, तेलगू, कन्नड ऐसी कई भाषाओं में शिक्षा उपलब्ध है | यदि आप अपने बच्चे का सर्वांगीण विकास चाहते हैं, तो उन्हें अपनी भाषा में पढाएँ, अपनी संस्कृति में पढाएँ, ना कि किसी बाहरी भाषा में, क्यों कि अंत में वह अलग अलग भाषाएँ, काम की भाषाएँ सीख लेगा, लेकिन जो संस्कार, जानकारी और संस्कृति मातृभाषा की पढाई उसे देगी, वह उसे कहीं और नहीं मिलेगा |