रणथंबौर की रानी ‘मछली’ की कहानी..

29 Jul 2020 15:27:11

आज विश्व बाघ दिवस है | आज का दिन बाघों से संवर्धन और संरक्षण के लिये तय किया गया है | भारत में राष्ट्रीय पशु बाघ की स्थिती पिछले कई वर्षों में सुधरी है | भारत में जहाँ कान्हा, बांधवगढ, ताडोबा, रणथंबौर जैसे अभयारण्यों आज भी दुनिया सिर्फ और सिर्फ बाघों को देखने जाती है | भारत के लिये बाघ बहुत बहुत खास प्राणी है | और जब बात बाघों की निकलती है, तो यह ‘रणथंबौर की रानी : मछली’ के बिना पूरी हो ही नहीं सकती | रणथंबौर की एक ऐसी बाघिन जिसने रणथंबौर को ११ शावक दिये, जिसने कई सालों तक पर्यटकों को अपनी ओर खींचा, जिसकी मृत्यु पर पूरे देश में शोक की लहर दौड गई थी, ऐसी है ‘रणथंबौर की रानी, मछली की कहानी|”


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मछली एक बंगाल टायग्रेस थी | मछली के चेहरे पर एक मछली के आकार का प्यारा सा दाग था, जिसके कारण उसे यह नाम मिला ‘मछली’| उसकी चाल में और दिखने में एक रुतबा था, एक स्मार्टनेस थी | रणथंबौर के ३५० स्क्वेअर माईल पर इस मछली का राज था, उसने कभी भी किसी और बाघ या बाघिन को अपनी टेरेटरी में आने नहीं दिया | मछली प्रसिद्ध हुई वह २००३ की एक घटना के कारण | ऐसा कहा जाता है कि बाघ और मगरमच्छ कभी भी एक दूसरे के आडे नहीं आते | दोनों ही भक्षक प्राणी हैं, लेकिन आज तक ऐसी विरले ही घटनाएँ सुनने को मिली है जिसमें एक ने दूसरे पर आक्रमण किया हो | यह घटना भारत के रणथंबौर में घटी, भरी दुपहरी में कई टूरिस्ट जिप्सियों के सामने मछली ने एक मगरमच्छ का शिकार किया और वह प्रसिद्ध हो गई | मछली, रणथंबौर की जान थी | 



२००३ में अकाल पडा था, लेकिन मछली ने इस अकाल का भी हिम्मत से सामना किया | नेटजिओ की एक डॉक्युमेंट्री के अनुसार मछली के आखरी के दस सालों में रणथंबौर को जो आर्थिक लाभ मिला उसमें से १ करोड रुपये केवल मछली के कारण था, देश विदेशों से लोग मछली को देखने आते थे | जनवरी २०१४ में मछली उसके झोन, झोन नंबर ५ से अचानक गायब हो गई | वन विभाग और रणथंबौर वन से संबंधित सभी ने दिलो जान से मछली को खोजने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला, उसके पगमार्क्स भी नहीं | 



एक दिन अचानक रणथंबौर के कछीदाघाट भाग में सर्च ऑपरेशन के लिये गए लोगों की जिप्सी के सामने मछली प्रकट हुई | लगभग २६ दिनों के बाद मछली के दर्शन हुए, वह बिल्कुल ठीक थी, और फिर एक बार रणथंबौर में रौनक छा गई | ऐसी थी रणथंबौर की रानी ‘मछली’ | २०१६ में १९ वर्ष की आयु में मछली की मृत्यु हो गई | और पूरे देश में शोक की लहर छा गई | 

आज विश्व बाघ दिवस के खास दिन पर हम भारत का नाम रौशन करने वाली इस बाघिन मछली को याद करते हुए उसे श्रद्धांजली देते हैं | मछली जैसी ना कभी कोई थी, ना कभी कोई होगी |

- निहारिका पोल सर्वटे 
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