आज इंटरनॅशनल फॅमिली डे पर याद करते हैं “धनोवा” परिवार को..

15 May 2020 17:23:58

आज है इंटरनॅशनल फॅमिली डे | और हम सभी को आज इस लॉकरडाउन में अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है | जो अपने अपने परिवार से दूर हैं, उनको आज के दिन उनके परिवार की याद जरूर आ रही होगी | तो आज के दिन हम भी टेलिव्हिजन के एक खास परिवार को याद करते हैं | आपको पुराने धारावाहिक तो याद होंगे ही | जो 90’s की एरा में आए थे | उन्हीं में से एक धारावाहिक था, “हद कर दी” सन १९९८ में आया यह धारावाहिक तब बहुत ही प्रसिद्ध हुआ था | उसका खास कारण था, सचिन पिळगांवकर का निर्देशन और मुख्य किरदार में रामायण के हनुमान अर्थात “दारासिंह”| इस धारावाहिक की कहानी घूमती है धनोवा परिवार के इर्द गिर्द लेकिन इसकी खास बात यह है कि इस परिवार ने उस वक्त हर घर पर संस्कार किये | और इसीलिये आज के इस दिन हमें याद आ रही है, धनोवा खानदान की |


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ये घारावाहिक बताता है सूरज और नम्रता की कहानी | एक रिटायर्ड पोस्टमास्टर का बेटा सूरज, खूब मेहनत करके एक बडा बिझनसमन बन गया है | और उसकी पत्नी नम्रता हाउस वाईफ है (90’s के दशक के आम परिवारों में जैसा होता था बिल्कुल वैसा ही ) और जैसे ही वे बडा बंगला खरीदते हैं, नम्रता अपने बीजी पापाजी याने कि अपने साँस ससुर को पिंड गाँव से अपने साथ रहने के लिये बुलाना चाहती है | चिट्ठी लिखकर वे खबर करते हैं, और बीजी पापाजी आ जाते हैं मुंबई में | और शुरु होती है धनोवा परिवार की कहानी |



यह परिवार पंजाबी परिवार है | और उस वक्त समाज की कई महत्वपूर्ण बातों पर खेल खेल में इस धारावाहिक में बात की गई है | इस परिवार में ८ सदस्य हैं बीजी पापाजी, सूरज, नम्रता, उनके बच्चे रिया और नीरज साथ में घर पर काम करने वाली शोभा और ड्रायव्हर राजू जो उनके घर के ही सदस्य हैं | एक भरा पूरा परिवार कितना अच्छा लगता है, ये हमें धनोवा परिवार से सीखने मिलता है |


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१. घर पर दादा दादी का होना जरूरी :
ऐसा कहते हैं जिस घर में दादा दादी होते हैं, उस घर के बच्चों की परवरिश अलग ही समझ आती है | आज की एकल परिवार वाली परिस्थिती में हमें समझ आता है कि हम कितनी बडी बात अपने जीवन में miss कर रहे हैं | याने कि घर पर यदि दादा दादी हों, घर परिवार साथ रहे तो वह कितना खुशहाल हो सकता है, धनोवा परिवार हमें सिखाता है |




२. साँस ससुर के लिये भी माँ पिता जैसा ही प्यार :
जिन घरों में साँस बहु होती हैं वहां झगडा होता ही है,ऐसा कहा जाता है | लेकिन मन में साँस सुर के लिये भी माँ पिताजी जैसा ही प्यार हो तो वो घर खुशहाल भी रह सकता है, ये इस धनोवा परिवार से हमें सीखने मिलता है | नम्रता जिस तरह अपने बीजी पापाजी को अपने माँ पिताजी की जगह रखती है, देख कर बहुत ही अच्छा लगता है |



३. बच्चों को अच्छी बातों की सीख :
यदि परिवार बडा हो, बच्चों का ध्यान रखने के लिये घर पर माँ पिताजी के साथ दादा दादी और शोभा राजू जैसे अपने हों तो बच्चे अच्छी बाते सीख ही जाते हैं | अब आप अपना बचपन ही याद कर के देखिये जहाँ दादा दादी अच्छी बातें सिखाने होते हैं, वहाँ कोई बच्चा बिगड सकता है भला ? जैसे कि एक एपिसोड में पापाजी निक्कू और रिया को पैसे का महत्व समझाते हैं, या फिर सूरज का अहंकार खत्म करने के लिये पापाजी उसे भी सबक सिखाते हैं, या फिर गणपती उत्सव केवल किसी एक का ना होकर पूरे समाज का है ये समझाते हैं | देखकर लगता है, काश आज भी ये धारावाहिक टीव्ही पर बच्चों को दिखाया जा सकता तो कितना अच्छा होता |



४. घर पर काम करने वाले भी घर के ही सदस्य :
जैसे कि उपर कहा गया है कि राजू और शोभा भी इसी परिवार के सदस्य हैं | पापाजी राजू को अपने बेटे की तरह मानते हैं | राजू और शोभा की शादी भी बीजी पापाजी ही कराते हैं | सूरज शोभा को अपनी बहन मानता है और बच्चे राजू को राजू मामा कहते हैं | है ना प्यारा सा परिवार ? और शोभा और राजू भी पूरे परिवार के लिये दिल से सब कुछ करते हैं | धनोवा परिवार हर तरह से एक आदर्श परिवार है |



५. समाज की सारी समस्याओं को अलग तरह से पेश करना :
९० का दौर अलग था | उस वक्त समाज की परेशानियाँ और समस्याएँ भी अलग थी | आज के मुकाबले कम थी कह सकते हैं, और सौम्य भी थीं, लेकिन अलग थीं | ऐसे में किसी भी प्रकार से लडकियाँ लडकों से कम नहीं है, लडकियों को छेडखानी के खिलाफ खुद ही आवाज उठानी चाहिये, या लडकियाँ भी जॉब करके कमा सकती हैं, ये ९० के दशक में दिखाना अपने आप में ही सराहनीय था | समाज में माँ बाप की घटती इज्जत, बढते वृद्धाश्रमों की समस्या को जिस तरह से इस धारावाहिक में दिखाया गया, पापाजी जिस प्रकारसे वृद्धाश्रम के सभी बुजुर्गों को बुलाकर पूरे धनोवा परिवार के साथ मिलकर उनके साथ ३१ दिसंबर का जश्न मनाते हैं, अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है |



था तो ये धारावाहिक मनोरंजन के लिये | लेकिन मनोरंजन के साथ साथ हर एपिसोड में समाज के नाम था एक संदेश जो पापाजी अपने मजाक मजाक में दे जाते हैं | इस धारावाहिक में दारासिंह के साथ साथ बीजी के किरदार में रीता भादुरी, सूरज के किरदार में महेश ठाकुर, नम्रता के किरदार में शिल्पा तुळसकर, शोभा के किरदार में किशोरी गोडबोले, राजू के किरदार में सुमीत राघवन, पठान के किरदार में शहजाद खान, बडी रिया के किरदार में पल्लवी कुलकर्णी और नीरज के किरदार में स्वप्निल जोशी जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के अभिनय देखने को मिलेंगे |


सचिन पिळगांवकर ने इस धारावाहिक के माध्यम से समाज में आदर्श परिवार कैसा हो इसकी तस्वीर रखी है | इस धारावाहिक के सारे एपिसोड्स यूट्यूब पर आप देख सकते हैं | आज दारा सिंह और रीता भादुरी इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी याद आपको जरूर आएगी, और लगेगा काश ये अभी भी इसी तरह हमारे साथ होते | बाकी सभी किरदारों के अलग अलग अभिनय आपने देखे होंगे लेकिन यह धारावाहिक अपने आप में अलग है | और आज की सामाजिक परिस्थिती में हमें इसे जरूर देखना चाहिये |

कभी कभी पुरानी यादों को ताजा कर लेना अच्छा होता है, है ना?

- निहारिका पोल सर्वटे


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