आप सभी को अपना बचपन याद है? बचपन बोलें तो सबसे पहले क्या याद आता है? माँ!! है ना? हमारी पसंद की हर चीज बना कर खिलाने वाली, हर बात का खयाल रखने वाली, दादा दादी की हर छोटी जरूरत का खयाल रखने वाली, पापा की गाडी की चाबी, वॉलेट रुमाल देने वाली, घर का सारा कामकाज संभालने वाली, हर काम खुद करने वाली और दूसरों को आराम देने वाली माँ !!! क्या कभी सोचा है यदि वो घर में ना हो तो घर कैसा रहेगा? खाली.. एकदम वीरान है ना.. लेकिन अक्सर हम घर को संभालने वाली उस माँ, पत्नी और बहू के काम का मोल लगाना भूल जाते हैं, उसकी वॅल्यू करना भूल जाते हैं, जब तक वो ना हो तब तक उसके काम की उसकी मेहनत की अहमियत नहीं समझ पाते | और अक्सर कह देते हैं, तुम काम क्या करती हो? तुम्हारे पास तो कितना समय होता है | पार्लर /क्लास/ बिझनेस ही तो चलाती हो ना, घर से ही काम करती हो ना, इतना तो कर सकती थी | इसी दर्द को बयाँ करने वाली कहानी है “घर की मुर्गी” |