कल याने कि १४ सितंबर को हिंदी दिवस था | संपूर्ण देश में हिंदी दिवस मनाया गया, शासकीय कार्यालयों में विविध प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं, स्कूलों में ऑनलाइन हिंदी दिवस के कार्यक्रम संपन्न हुए | एक ओर साल के एक दिन हिंदी को लेकर हम इतने उत्साहित रहते हैं, वहीं दूसरी ओर साल भर हिंदी बोलने वालों की ओर, हिंदी में लिखने वालों की ओर एक हीन दृष्टी से देखा जाता है, हिंदी बोलने में लोगों को शरम आने लगी है, मेरा प्रश्न है, ऐसा क्यों ?
देखा जाए तो हिंदी जैसी संपन्न भाषा को बोलने में शर्म आना अपने आप में ही एक शर्मनाक बात है | हिंदी के प्रति हमें अभिमान होना चाहिये | विभिन्न अलंकारों से सजी हिंदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, मैथिली शरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रा नंदन पंत आदि, जैसे महान कवियों के पद्य और गद्य साहित्य से सजी हिंदी, यदि आपने आपके शालेय कार्यकाल में नहीं पढी, तो यह आपका दुर्भाग्य है |
आज हमारे देश में कई प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं, सैकडों भाषाओं से सजे इस देश की राजभाषा हिंदी है, और हिंदी का ज्ञान होना, साहित्य में रुचि होना अपने आप में एक बडी बात है | अत: यदि आप अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी में बात करने में अधिक सहज महसूस करते हैं, यदि आपको आपकी इस भाषा पर अभिमान है, और यदि आप अपनी आने वाली पिढी तक यह भाषा पँहुचाना चाहते हैं, तो हिंदी में बात करने से कतराईये नहीं, आज की तारीख में अच्छी हिंदी होना भी सभी के बस की बात नहीं है |
आज छोटे छोटे बच्चे भी ए बी सी डी तुरंत सीख लेते हैं, लेकिन उन्हें क ख ग सिखाने में नानी याद आ जाती है, बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी में बात कर लेते हैं, लिख पढ लेते हैं, लेकिन हिंदी में निरक्षर रहते हैं | और उनके माता पिता को इस बात का गर्व होता है, कि देखो हमारा बच्चा कितनी अच्छी अंग्रेजी बोलता है | अंग्रेजी एक भाषा के तौर पर आनी ही चाहिये, लेकिन उसकी महानता के तले, हिंदी, मराठी, कन्नडा, बांग्ला, गुजराती, तेलगू, तमिल, तुलू आदि जैसी भाषाओं का अपमान कतई सही नहीं है |
इसलिये अपनी हिंदी की रक्षा अब हमें करनी है | हिंदी में बात करने, हिंदी पढने, हिंदी में लिखने को बढावा दें | हिंदी साहित्य सीखने पर बढावा दें | स्वयं ये बात अपनाएँ, और आने वाली पिढीयों को भी समझाएँ, क्यों की :