‘हाथरस’ ने फिर एक बार दिखा दिया कि इतने सालों में मानसिकता ज्यों कि त्यों !!!

    30-Sep-2020   
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क्या आपको १६ दिसंबर २०१२ की रात याद है, जब दिल्ली में चलती बस में ‘ज्योति सिंह’ जिसे निर्भया नाम दिया गया, उसके साथ हैवानियत की भीषण घटना हुई थी | ये बात है सन् २०१२ की याने कि आज से लगभग ८ साल पहले की | इन ८ सालों में हमने क्या सीखा ? इन ८ सालों में पुरुषों ने, उनकी मानसिकता ने क्या सीखा ? उत्तर है कुछ भी नहीं !!! उत्तरप्रदेश के हाथरस में दो हफ्ते पहले १९ साल की एक लडकी के साथ गांव के ही ४ दरिंदों ने दुष्कर्म किया | और बीती रात दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई | वही सफदरजंग अस्पताल जहाँ लगभग ८ साल पहले निर्भया इसी तरह से पीडा में बिलख रही थी | 8 साल !!!! लेकिन समाज आज भी ज्यों का त्यों…


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इस मामले में बहुत कुछ कहा जा रहा है, बहुत कुछ बताया जा रहा है | इस मामले की राजनीति में ना जाते हुए, एक बात अवश्य आज भी स्पष्ट को जाती है, कि कितने ही बलात्कार के दोषियों को फाँसी हो जाए, कितने ही लोग कँडल मार्च निकाल ले, समाज का एक हिस्सा आज भी उसी वहशी दरिंदगी को बढा रहा है, जो ना कभी बदल सका है ना कभी बदलेगा, कितनी बार निर्भया अपना बलिदान देदे समाज को बदलने के लिये, लेकिन यह हिस्सा वैसा का वैसा रहेगा, इनकी घिनौनी मानसिकता सोच से भी परे है | आज भी हमारे यहाँ ऐसे पुरुष दरिंदगी की सीमा बिना सोचे समझे लांघ सकते हैं, इसके लिये कितनी भी मर्दानियाँ मैदान में उतर आए, इन्हें ना फरक पडा है, ना पडेगा, यही शायद हमारा सबसे बडा दुर्भाग्य है |

घटना की जानकारी :


लगभग दो हफ्ते पूर्व दिल्ली से १८० किमी दूर उत्तरप्रदेश के हाथरस में अपनी माँ के साथ यह निर्भया खेत में गई थी, जहाँ उसके साथ ४ दरिदों ने दुष्कर्म किया | ऐसा कहा जा रहा है कि उत्तरप्रदेश पुलिस ने शुरु से ही इस बच्ची और उसके परिवार को मदत नहीं की, लेकिन सत्य क्या है इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है | हाथरस की इस निर्भया को पहले उत्तर प्रदेश के ही जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था | इसे गंभीर चोटें आई थीं | कहा जा रहा है कि, इस बच्ची की रीढ की हड्डी तोड दी गई थी, फाँसी देने का प्रयत्न किया गया था, जीभ तक काट दी गई थी | हैवानियत और दरिंदगी की परिसीमा लांघ चुके थे वे ४ लोग | उसकी हालत गंभीर होने पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में लाया गया, और आखिरकार उस बच्ची ने अपना दम तोड दिया |

यहाँ पर पुलिस की कारवाई पर भी प्रश्न उपस्थित हो रहे हैं | इस बच्ची का दाह संस्कार उसके परिवार के बबिना क्यों किया गया ? परिवार रोते बिलखते, अपनी बेटी को घर से अंतिम बिदाई देना चाहता था, वह क्यों नहीं होने दिया गया ? यह प्रश्न भी उपस्थित हो रहे हैं | 

२०१९ में हैदराबाद में इसी तरह के हुए एक मामले में पुलिस ने एनकाउंटर में दुष्कर्म के आरोपियों को मार गिराया था | तब भी देश के बुद्धिजीवियों नें उनकी कारवाई पर, देश के कानून पर सवाल खडे किये थे | और आज भी देश के कानून, व्यवस्था, प्रशासन और पुलिस पर सवाल खडे हो ही रहे हैं, जो शायद इस मामले में जायज भी हैं |

इस विषय में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट करते हुए पूरी घटना की भर्त्सना की है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विषय में रोष व्यक्त किया है | देश और राज्य दोनों की सरकार की ओर से कहा गया है कि, जल्द ही इस बच्ची को और उसके परिवार को न्याय मिलेगा |
न्याय कब मिलेगा, उसके लिये क्या करना होगा, पुलिस साथ दे रही है कि नहीं, सरकार के कदम सही हैं या नहीं.. यह सब बाद की बात है, मुख्य बात तो यह है कि ये मानसिकता कब बदलेगी ? कब तक देख की बेटियों को डर डर के जीना पडेगा ? घटनाएँ अलग अलग होंगी लेकिन उसका सार एक ही है कि इन ८ वर्षों में कुछ भी नहीं बदला है |

इस मामले में लिखी एक कविता अवश्य आज के दिन के लिये उपयुक्त लगती है :

“छोडो मेहँदी खड्ग संभालो,

खुद ही अपना चीर बचा लो..

द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,

मस्तक सब बिक जायेंगे..

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे|


- निहारिका पोल सर्वटे