रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई।
हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ॥
कहानी शुरू होती है सन १९४७ से जब भारत को ब्रिटिशराज से आज़ादी मिली और कुछ चुनिंदा लोगों ने मिलकर एक समिति का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य था ऐसी नियमावली बनाना जो ब्रिटिशराज के अंधे-कानून से बेहतर हो, जिससे देश में सुव्यवस्था और सुशासन आए। इस समिति ने अपने कार्य की पूर्ति की और वर्ष १९५० में भारत एक गणतंत्र देश बना; विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश और इसके मूल में था इस राष्ट्र का सविंधान!
अब हमने सविंधान का अभ्यास किया हो या न हो, उसे पढ़ा हो या न हो किंतु इसका एक कानून लगभग हर कोई जानता ही है। भारत के सविंधान का आर्टिकल १९ कहता है कि इस राष्ट्र के हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। यहाँ हर व्यक्ति, बगैर किसी हस्तक्षेप या रोक-टोक के और किसी भी माध्यम से अपने विचार, राय और जानकारी का आदान-प्रदान कर सकता है।
अब आते है कल दोपहर महाराष्ट्र राज्य में हुई एक घटना पर। मुंबई के कांदिवली इलाके में रहनेवाले ६५ वर्षीय वृद्ध, जिन्होंने अपने जीवन के अधिकतम वर्ष भारतीय नौसेना अफसर के तौर पर देशसेवा में निछावर किए है, वे अपने व्हाट्सएप से अपनी सोसाइटी के ग्रुप पर एक कार्टून चित्र शेयर करते है। इसके कुछ समय बाद उन्हें कमलेश कदम नामक व्यक्ति का फोन आता है जो उनसे उनका नाम और पता पूछते है और थोड़ी देर बाद मास्क पहने लोगों का एक समूह आकर इस भूतपूर्व अफसर की पिटाई करता है। वे जब उस समूह के चंगुल से छुटकर दौड़ने लगते है तब ये मास्क-धारक नौजवान उन्हें उनकी कमीज़ से पकड़कर घसीटते है और उनपर लात और मुक्के बरसाए जाते है।
हमारी सभी पाठकों से दरख्वास्त है कि वे यूटूब या अन्य माध्यमों से इस घटना का विडियो ढूंढे और उसे अंत तक देखकर अपनी राय हम तक पहुंचाए। क्योंकि हालाँकि ऐसी ख़बरें आ रही है कि कमलेश कदम समेत ६ लोगों को पकड़ लिया गया है लेकिन हम अपने पाठकों से जानना चाहेंगे कि क्या इतना काफी है? क्या यह मामला कमलेश कदम और उनके साथियों तक सीमित है? और ऐसा करनेवालों की सज़ा क्या होनी चाहिए? महाराष्ट्र और पत्रकारिता के इतिहास में दिग्गज कार्टूनिस्ट हुए है। कार्टून द्वारा देश में हो रही घटनाओं पर अपने विचार व्यक्त करना पत्रकारिता और महाराष्ट्र की पूरानी रीति रही है। ऐसे में, एक व्यक्ति द्वारा एक व्हाट्सएप फॉरवर्ड के लिए ऐसी प्रतिक्रिया का क्या मतलब निकला जाए?
आज जब भारत और चीन की सीमा पर सतत तनावपूर्ण वातावरण है और कितने ही सैनिक अपने घर परिवार को छोड़कर राष्ट्रसेवा में लगे है, कल उनकी निवृत्ति के बाद क्या उन्हें भी उनके बलिदानों का कुछ ऐसा ही फल भुगतना होगा? या इस देश की जनता को अब एक असली ‘हीरो’ के साथ हुए हादसे के लिए आगे बढ़कर कदम उठाने की आवश्यकता है? हम आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में होंगे...