रामायण और महाभारत पुन: एकबार दूरदर्शन पर प्रसारित होने के कारण हम सभी का बचपन मानो लौट आया है | फिर वही लोग उन्हीं किरदारों में हमें नजर आ रहे हैं और हम फिर एकबार बचपन के उस रविवार के समय में जा पँहुचे हैं | जब हमें ऐसा अनुभव हो रहा है, तो आप सोचिये जिन्होंने ये किरदार निभाए हैं, उन्हें कैसा लग रहा होगा? है ना? पहले तो हमने श्री कृष्ण जी याने कि नितीश भारद्वाज से उनके अनुभव जाने | अब बारी है दुर्योधन की, अर्थात पुनीत इस्सर जी की | तो चलिये देखते हैं फिकरनॉट से की गयी इस खास बातचीत वे क्या कह रहे हैं?
जब हमने उनसे पूछा कि यदि किरदार की याने कि दुर्योधन की बात की जाए तो यह किरदार महाभारत की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, और पुराणों के किरदार चाहे वे नकारात्मक हो या सकारात्मक, उनसे हम हमेशा बहुत कुछ सीखते हैं | तो इस किरदार से मिली ऐसी कौन सी एक सीख है जो आपके साथ हमेशा रहेगी ? इसका बहुत ही सुंदर उत्तर देते हुए वे कहते हैं कि रामायण महाभारत से बहुत कुछ सीखने लायक है | मैं मानता हूँ कि हमें क्या करना चाहिये ये रामायण सिखाता है, और हमें क्या नहीं करना चाहिये ये महाभारत सिखाता है | रामायण में आदर्श पिता, आदर्श भाई, आदर्श पति की बात की गई है, रामायण में जो नकारात्मक किरदार हैं, वे भी आदर्श ही हैं, अत: क्या होना चाहिये ये रामायण सिखाता है | लेकिन महाभारत हमें यह सिखाता है कि क्या हो रहा है, और हमें क्या नहीं करना चाहिये | यदि मैं महाभारत के किरदारों की बात करूँ तो महाभारत का कोई भी किरदात पूर्णत: नकारात्मक या पूर्णत: सकारात्मक नहीं है | जो ९५% सकारात्मक हैं, उनमें ५% नकारात्मकता की झलक है, और जो ९५% नकारात्मक हैं, उनमें ५% सकारात्मकता की भी झलक है | दुर्योधन से ‘मैत्री’ का गुण सीखने लायक है, जिस प्रकार उसने कर्ण से मैत्री निभाई यह अपने आप में ही एक विशेष गुण है | साथ ही दुर्योधन ने हमेशा ही जात पात के विरुद्ध आवाज उठाई है | आज भी हमारे समाज को जात पात ने घेर रखा है, लेकिन दुर्योधन ने उस वक्त भी इस के खिलाफ आवाज उठाई थी | ये कुछ गुण हैं जो दुर्योधन से सीखने को मिलते हैं | दुर्योधन का नाम सुयोधन था, और दुर्योधन का अर्थ भी गलत नहीं है, इसका अर्थ है जो बुरी तरह युद्ध करे | हमें आज के समय में समाज की बुराइयों से बुरी तरह से युद्ध करने की आवश्यकता है |
जब पहली बार महाभारत टीव्ही पर आया था, तब का समय अलग था और आज का समय अलग है, लेकिन आज भी हम राजनीति की दृष्टी से देखें तो हमें कई दुर्योधन और समाज की दृष्टी से देखें तो कई दु:शासन नजर आते हैं | आज के समय में इन दुर्योधन और दु:शासन का सामना हम कैसे कर सकते हैं ? ये सवाल पूछने पर वे बडा ही सुंदर उत्तर देते हैं, वे कहते हैं.. आज के समय में जो गलत है, हमें उसे गलत कह कर उसका अंत करना ही चाहिये | क्यों कि अंत में जीत सत्य और धर्म की ही होती है | दुर्योधन गलत था इसलिये उसका अंत हुआ | वे कहते हैं दुर्योधन में ५ विकार थे जो आज के समाज में भी है अहंकार, ईर्ष्या, असंयम, क्रोध और अति महत्वाकांक्षा यदि ये रहेंगे तो आपका अंत भी दुर्योधन के समान ही होगा | इन ५ विकारों से हमें लडना है, तभी हम ऐसे लोगों का सामना आज के समाज में कर सकते हैं |
आज की राजनीति के दृष्टी से हम महाभारत को देखें तो हमें इससे क्या सीख मिलती है? या ये कैसे प्रासंगिक है ? ये पूछने पर वे अपने एक नाटक के विषय में बताते हैं, वे कहते हैं, हमारा एक नाटक है, महाभारत : एन एपिक टेल, उसके गीत में ही इसका सार है | गीत के बोल हैं, “ ये महाभारत है, संग्राम महाभारत है, छल बल और कपट का परिणाम महाभारत है |” जब राजनीति में छल बल और कपट आ जाता है, तो वहाँ महाभारत होता ही है | इसी लिये राजनिती की दृष्टी से भी हमें महाभारत से यही सीख लेनी चाहिये कि हमें क्या नहीं करना है | यदि आपका पति अंधा है तो आपको गांधारी नहीं बनना चाहिये आपको तो उसकी आँखे बनना चाहिये, इसी प्रकार यदि सत्ता पर बैठा व्यक्ति अंधा है, उसे दिखाई नहीं दे रहा तो उसके साथियों को उसे सही राह दिखानी चाहिये, इसी प्रकार महाभारत के ऐसे कई प्रसंग हैं, जो हमें बताते हैं कि हमें क्या नहीं करना चाहिये | भीष्म की तरह प्रतिज्ञा भी नहीं लेनी चाहिये, यदि सिंहासन पर कोई अयोग्य व्यक्ति बैठा है, तो उस सिंहासन की सेवा हमें नहीं करनी चाहिये, वरन वह सिंहासन योग्य व्यक्ति को कैसे मिले इसका प्रयत्न करना चाहिये | जिस प्रकार द्रौपदी के चीर हरण के वक्त सभी सभा में चुप बैठे थे, उससे ये सीख मिलती है कि स्त्री का अपमान होने पर हमें मूकदर्शक बन कर चुप नहीं बैठना चाहिये | और भी बहुत सारी बातें हैं जो महाभारत हमें राजनीति की दृष्टी से सिखाता है |
नाटक महाभारत : An epic tale का एक स्थिर छायाचित्र
फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो।
दु:ख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो,
होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।।
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।
इस तत्व पर ही कौरवों से पाण्डवों का रण हुआ,
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ।।
हां ! हां ! इसी समराग्नि में सर्वस्व स्वाहा हो गया।
दुर्वृत्त दुर्योधन न जो शठता-सहित हठ ठानता,
जो प्रेम-पूर्वक पाण्डवों की मान्यता को मानता,
तो डूबता भारत न यों रण-रक्त-पारावार में,
‘ले डूबता है एक पापी नाव को मझधार में।’