युवा , youth , youngsters, इन शब्दों का हम जब भी उपयोग करते है तो हमारे सामने आते है शरीर पर टैटू बनाए हुए घुटनों पर फटी जींस पहने ,बालों मे स्पाईक कट बनाए हुए अजीब प्राणी जो हर बात मे पार्टी करना पसंद करते है , घूमना , खाना-पीना इन्हे बेहद पसंद होता है और हां हर एक मिनिट मे सेल्फी लेना , सोशल मीडिया पर अपडेट रहना , मोबाईल का साथ वॉशरूम में भी ना छोडना , और हाफ पैंट मे शहर क्या विदेश घूम आना वगैरा वगैरा।।।।
पहले के जमाने मे कहा जाता था अभी 25 का ही तो है ये अभी पूरी जिंदगी पडी है पर आज की ये "मिलेनियल जनरेशन" 25 वे साल तक जीवन का आधा पडाव पार कर चुकी होती है, हम सब जानते है कि भारत सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश है , हमारे यहां के नौजवान हर बात मे आगे है और आज का ये युवा अपनी मेहनत से देश मे और समाज मे बदलाव लाने की ताकत रखता है!!!!
तो आज हम एक ऐसे ही नौजवान के बारे मे जानेंगे जिसने अपने अनोखे अंदाज से खुद को बाकी सबसे अलग साबित किया। मात्र 24 वर्ष का ये लडका बाकी सब के लिए एक प्रेरणा बन गया। जबलपुर शहर का एक युवा उद्यमी प्रशस्त विश्वकर्मा जो कि अपने व्यवसाय के साथ ही समाज और देश के लिये एक अमूल्य कार्य कर रहा है , आइए जानते है प्रशस्त के जीवन के बारे में उसके साथ की गयी बातचीत के द्वारा........
अपने बचपन के बारे मे बताते हुए वो कहते है कि पढने मे कुछ खास कमाल कभी किया नही , बस स्कूल जाना और पास हो जाना इतना ही आता था , बहोत confusion था आगे करना क्या है?? सब अलग अलग बताते , पर कोई एक रास्ता नही निकलता, ऐसे ही बचपन बीता।
समाजसेवा करना है ये विचार मन मे कैसे आया?
ये पूछने पर वो कहते है कि जब से समझ आयी पिताजी को हमेशा दूसरों की मदत करते देखा , जो भी जरूरतमंद घर आया वो कभी खाली हाथ नही लौटा, तभी से मन मे दूसरो की सहायता का विचार आया , पिताजी से इस काम को करने की प्रेरणा मिली, तभी उसने अपने स्तर पर लोगो की सहायता शुरू की, जितना संभव हुआ सहायता करने की पूर्ण कोशिश की।
ऐसी कोई घटना जिससे प्रेरित होकर आपने यह कार्य करने का निश्चय किया??
इसके जवाब मे प्रशस्त कहते है कि घर के ही पास एक बूट पॉलिश वाला बैठा करता था , जिससे कभी कभी वो अपने जूते पॉलिश कराता था , एक दिन बातो-बातो मे उसे पता चला कि उस बूट-पॉलिश वाले की बेटी दिव्यांग है , घर मे कमाने वाला वो एक ही है और जूते पॉलिश करके वो अपनी बेटी का इलाज नही करा सकता।। ये सुनकर प्रशस्त को बहोत दुख हुआ और उसने अगले दिन से पांच गुना अधिक दाम देकर रोज अपने जूते पॉलिश कराना शुरू कर दिया जिससे कि उस आदमी की मदत हो सके। और तभी उसने ये निश्चय किया कि वो जितना हो सके ऐसे लोगों की सहायता करेगा , ऐसे उपेक्षित लोग जिनके पास रहने को घर नही , खाने को अन्न नही , कपडा नही , इलाज के लिये पैसे नही , त्यौहार मनाने के लिये साधन नही , उन सब के लिये जो कुछ संभव होगा वो करेंगे , और हां ऐसे लोग जो वाकयी जरूरतमंद है उन्हे ढूंढ कर उनका जीवन सरल बनाने का प्रयत्न करेंगे।
अपनी संस्था के बारे मे प्रशस्त का कहना है कि ये एक ग्रुप है जो उसने अपने हम उम्र दोस्तो "आशीष" "शरद" और "रितेश" के साथ मिल कर बनाया है जिससे वो अधिक से अधिक लोगों की सहायता कर सके , इस फाउण्डेशन को वे लोग किसी की मदत से नही चलाते बल्कि सामान जुटाने के लिये लोगो से अपील करते है जिससे वो हर जरूरतमंद तक पहुंच सके , इस काम मे प्रशस्त के माता-पिता का भी पूरा सहयोग रहा तथा वे समय-समय पर उसको प्रेरणा देते रहे, अब उनका यह ग्रुप अपने तरह का अनोखा ग्रुप था जिसमे सबसे युवा कार्यकर्ता थे , शुरूआती दौर में इन लोगो ने भोजन सामग्री इत्यादी बांटने का काम किया फिर धीरे-धीरे सभी आवश्यक वस्तुएं, खाना , मिठाई , फल , त्यौहार मनाने मे लगने वाली आवश्यक वस्तुएं वितरित करने लगे , उद्देश केवल इतना कि त्यौहार के दिन कोई भूखा ना सोए।
करियर के बारे मे पूछने पर प्रशस्त का कहना है कि एक समय उनके घरवालो को भी यही लगा था कि वो किसी महानगर मे जाए आगे की पढाई करे और वहीं अच्छे पैकेज की नौकरी करके बस जाए , परंतु ऐसा करने से उनका उद्देश कहां पूरा होने वाला था , उन्हे तो अभी बहोत से काम करने थे , इसलिये उन्होने अपने ही शहर मे रहकर व्यवसाय करने को चुना जिससे वो बचा हुआ समय "हम है ना" फाऊंडेशन को दे सके, और वो अपने इस फैसले से खुश है आज जब उसके बहोत से साथी महानगरों मे रहते है , रोज पार्टियां करते है तो एक बार उन्हे लगता है कि शायद कुछ खो दिया पर अगले ही पल उन जरूरतमंद लोगों के चेहरे याद आते है उनसे मिलने वाली दुआएं याद आती है और वो खुश हो जाते है ये सोचकर कि इस मुस्कान के आगे किसी बात का कोई मोल नही!!!
थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसमे शरीर मे रक्त जमता नही , यह एक ऐसी तकलीफ है जिसमे मरीज को बार बार रक्त देना पडता है जिससे वह जीवित रह सके , अभी तक इस समस्या का कोई निदान नही हुआ है और इस तरह हर हफ्ते मे एक बार रक्त की आवश्यकता पडती है यह बहोत ही महंगी और खर्चीली प्रक्रिया है जो एक साधारण व्यक्ती की जेब से बाहर की बात है। "हम हैं न" ग्रुप के युवाओं ने इस बीमारी से ग्रसित बच्चो की मद्दत करने की ठानी , अब वे उन छोटे बच्चो के लिये रक्तदान करने लगे जो थैलसेमिया पीडित है व जिनके माता-पिता ये खर्च नही उठा सकते, प्रशस्त अब नियमित रूप से रक्तदान करने लगे व अन्य लोगो से भी इसके लिये अपील करने लगे!!!
और आपको यह जानकर आश्चर्य से ज्यादा गर्व महसूस होगा कि प्रशस्त और उसके साथीयों ने 150 से अधिक बार रक्तदान करके अनेक मासूमों को जीवनदान दिया है
कोरोना संक्रमण - आज जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस संक्रमण से जूझ रही है सभी अपने अपने घरो मे बंद है ऐसी विपदा के समय भी प्रशस्त और उसके साथी पिछले 10 दिनो से लगातार जरूरतमंदो की मदत कर रहे है , वे सभी अपने स्तर पर सामग्री जुटाने का काम कर रहे है, हर प्रकार से कोशिश कर रहे है कि इस लॉकडाउन के समय कोई मजदूर कोई गरीब भूखा ना सोए , दिन भर अपना व्यवसाय संभालना व रात को अपने जरूरतमंद भाईयों की मदत करना , यही उनका पहला कर्तव्य हो गया है , कभी-कभी कोई बहोत ही महत्वपूर्ण मीटिंग छोडकर भी इस काम के लिये जाना पडता है पर नुकसान की परवाह न करते हुए सबसे पहले मदत के लिये जाना यही उनका उद्देश्य बन गया है , संक्रमण का खतरा इतना अधिक होते हुए भी स्वयं अपनी चिंता न करके दूसरो को सहायता पहुंचाना , मात्र 24 वर्ष की आयु मे इतना दृढनिश्चय और संकल्प अत्यंत सराहनीय है!!!
सोशल मीडिया का आपके जीवन मे उपयोग- इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रशस्त कहते है कि सोशल मीडिया ये उनके काम की "बैकबोन" है , इसके बिना वो कोई काम नही कर सकते , वो लगातार सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते है व अपनी सारी गतिविधियां शेयर करते हैं, किसी प्रकार की प्रसिद्धी पाने का उद्देश मन मे नही है बल्कि ये फोटो देखकर बाकी युवाओं को प्रेरणा मिले वो आगे आएं और इस पवित्र काम मे उनकी मदत करे!!
"हम हैं न फाउण्डेशन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना , गरीब बच्चों के लिये स्कूल खोलना ऐसे अनेको स्वप्न है जो अभी पूरे होना है जिसके लिये सोशल मीडिया जैसा सशक्त माध्यम आवश्यक है!!
प्रशस्त का यह अनूठा कार्य, उसके लिये की जाने वाली मेहनत , निरंतर हर प्रकार से जुटे रहना , अपने साथ अन्य लोगों को प्रेरणा देना, भरपूर उत्साह , सजगता ये आज के युवाओं के लिये एक सीख है , आज जब युवा महानगर की ओर भाग रहा है , हर कोई अपना शहर छोड कर जाना चाहता है , बाहर ही बस जाना चाहता है लाखो के पैकेज वाली नौकरी करना चाहता है ऐसे समय प्रशस्त जैसे युवा एक योग्य उदाहरण है कि पैसा ही जीवन में सबकुछ नही, धन्य है वो माता-पिता जिन्होने अपने बेटे को परोपकार के संस्कार दिये है, पैसे कमाने की अंध स्पर्धा से उपर उठकर जीवन जीने के असली मायने सिखाये है और इस अनोखे काम मे हर कदम पर प्रशस्त की प्रेरणा बने है!
जीवन का अर्थ बताते हुए प्रशस्त कहते है :
"सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामया"
यही उनके जीवन का मूल्य है और उद्देश भी ।
ऐसे लोग नाम और प्रसिद्धी पाने दुनिया मे नही आते , परंतु दुनिया उन्हे उनके अच्छे कामो से पहचानने लगती है
प्रशस्त का मार्ग प्रशस्त हो यही शुभकामनाएं हैं..