इस वर्ष महिला दिवस की थीम थी, ‘समानता’ अर्थात Gender Eqality. लेकिन क्या आज भी हम सही मायने में ये समानता ला पाये हैं? इस प्रश्न का उत्तर देती हुई यह अनोखी घटना | लगभग ४ साल पहले आप सभी ने पुणे के एक व्यक्ति आदित्य तिवारी की कहानी शायद पढी होगी | एक एकल पिता जिन्होंने डाउन सिंड्रोम से ग्रिसत नन्हे बच्चे को गोद लिया | इस वर्ष उन्हीं आदित्य तिवारी को बंगलोर में ‘बेस्ट मॉमी ऑफ द वर्ल्ड’ इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है | समानता का इससे बडा उदाहरण दे सकते हैं आप?
हमारे देश में जहाँ आज भी बहुत ही छुपते छुपाते बच्चा गोद लिया जाता है, समाज में इससे संबंधित ढेर सारे सवाल जवाब किये जाते हैं | आज भी हर किसी को ‘अपना खून’ चाहिये होता है, ऐसी परिस्थिती में पुणे स्थित एक एकल नौजवान जो कि सिंगल है, एक बच्चा गोद लेना चाहता है | एक ऐसे बच्चे को नयी जिंदगी देना चाहता है, जिसे डाऊन सिंड्रोम जैसा विकार है | यह अपने आप में ही एक बडी बात है |
आदित्य तिवारी केवल २७ वर्ष के थे जब उन्होंने ये निर्णय लिया | उनका यह निर्णय आसान नहीं था | उस वक्त तक एकल पिता तो बच्चा गोद लेना बहुत कठिनाई का काम था | साथ ही बच्चा गोद लेने के लिये आपको ३० वर्ष की उम्र का होना आवश्यक था, लेकिन फिर भी हर कठिनाई का सामना करते हुए आदित्य ने ‘अवनीश’ को एक नयी जिंदगी देने का प्रण किया और हर कठिनाई पर मात कर उसे गोद लेने में आदित्य सफल रहे |
आज जहाँ हम निर्भया का केस देखते हैं, उनके गुनहगारों को देखते हैं, तब लगता है कि समाज में कैसे मर्द हैं? कैसे मर्दों को ये समाज शह दे रहा है | लेकिन आदित्य को देखकर एक आशा आज भी मन में जागती है कि चाहे समाज में कितने भी गुनहगार हों, आदित्य जैसे मर्द आज भी हैं और वे आने वाली पिढी के सभी पुरुषों के लिये एक प्रेरणा हैं | आदित्य ने नयी पिढी को एक राह दिखाई है, जो समाज को एक नयी और सकारात्मक दिशा में लेकर जाएगी |