ऐसा कहते है ईश्वर की सर्वोत्तम कृती स्त्री है , स्त्री अनेक गुणो से परिपूर्ण है , बात चाहे बोर्ड परिक्षाओ की हो या लोकसभा चुनाव की , हर जगह स्त्री अपनी छाप छोड रही है ऐसा कोई क्षेत्र नही जहां पर स्रीयो ने अपना योगदान ना दिया हो , संगीत , कला , मनोरंजन, विज्ञान कोई भी क्षेत्र उनके बिना पूरा ही नही होता , आज लडकियां अपने माता पिता की देखभाल से लेकर ऑफिस और घर तक सब कुछ संभाल रही है , परिस्तिथी जो भी हो उनका डटकर मुकाबला करना , उपलब्ध साधनो में अच्छे से अच्छा परिणाम लाना ये उनके स्वभाव में होता है आज अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम जानेंगे ऐसी ही एक लडकी की कहानी......
अब मै बहोत अजीब महसूस कर रही थी और तुरंत ही वहां से निकल गयी , ट्रेन मे रातभर सोचती रही कैसा होगा इसका जीवन??? क्या करती होगी?? घर वापसी के बाद अवार्ड मिलने की खुशी मे और सफर की बाते करने मे सब भूल गयी , पर मन के किसी कोने मे एक बात दबी थी कि मुझे उसके बारे में जानना है कुछ समय बाद उसका नंबर पता किया और बात करने की ठानी।
जब उसे फोन किया तो मै काफी असहज थी पर ऋचा के खुशमिजाज अंदाज के कारण मुझे लगने लगा कि हम अच्छे दोस्त है , उसके बात करने के अंदाज से और प्यारी सी आवाज से कोई अंदाजा भी नही लगा सकता था कि वो एक अत्यंत कठिनाई भरा जीवन जी रही है जितना मैने देखा था उससे कई गुना असामान्य जीवन है उसका,
जन्म के समय बिलकुल सामान्य सी दिखने वाली ऋचा जब 4 साल तक अपने पैरों पर खडी नही हो पाती थी तो उसके माता- पिता परेशान होने लगे , बहोत से डॉक्टर और अलग- अलग हॉस्पिटल में उसका इलाज हुआ , उसके बाद जो पता चला वो बहोत भयानक और दुखदायी था , ऋचा को #मायोपैथी# नाम की एक लाइलाज बीमारी है जिसमें बच्चे की मांसपेशियां नही बनती , जितना बच्चा जन्म के वक्त नाजुक होता है वह बडा होकर भी वैसा ही रहता है उसमें उठकर बैठने की या चलने की या हाथ- पैर चलाने की ताकत ही नही होती , इसलिये ऐसे बच्चे बिस्तर पर ही पडे रहते है और उम्र बढने के साथ-साथ उन्हे ब्लड प्रेशर , लिवर की समस्या , हार्ट एनलार्ज होना ऐसी कयी अन्य बीमारियों का सामना करना पडता है , # मायोपैथी# एक करोड बच्चों मे से एक को होती है, और भारत में ही क्या विदेश में भी इसका कोई एक इलाज नही है।
ऋचा देवास जैसे छोटे शहर में रहती है परंतु उसके माता-पिता ने उसके इलाज के हरसंभव प्रयत्न किये, डॉक्टरों ने जवाब देने के बाद भी उन्होने धैर्य से काम लिया और अपनी बेटी के लिये एक बहोत ही सकारात्मक और अच्छा वातावरण बनाया , उसे कभी उपेक्षा की नजर से नही देखा ना ही किसी और को वैसा करने दिया। जब ऋचा ये समझने लगी कि वो दूसरों से अलग है तो उसने रोना रोने की बजाय लडना तय किया , उसने मायोपैथी से होने वाली सारी तकलीफो के बारे मे जानना शुरू किया और डटकर उसका सामना किया। जिस ऋचा के बारे में बोला गया था कि ये कभी बिस्तर से उठ नही पायेगी , कभी लिख नही पायेगी , वो पहले स्कूल फिर कॉलेज की पढाई करके एम.कॉम तक पहुंची , इतना ही नही बचपन से ही उसे संगीत और कला में रूची थी वो स्कूल के सारे कार्यक्रमों मे रोल निभाती थी , साथ ही रांगोली , मेंहदी , पेंटिंग , ड्रॉईंग हर कला मे वो निपुण हो गयी थी।
" देवी अहिल्या शक्ती सम्मान" " मराठी साहित्य अकादमी का केंद्र प्रमुख(देवास) पुरस्कार, अखिल भारतीय मराठी निबंध प्रतियोगिता में 5 बार प्रथम पुरस्कार , बृहनमहाराष्ट्र मंडल की सभी परिक्षाओ में अच्छे मार्क्स से पास होना, देवास क्विज मास्टर पुरस्कार इत्यादी।
अपनी बीमारी का बहाना करके बेवजह वो रुकी नही , अनवरत काम करती रही , हम अंदाजा नही लगा सकते कि उसे अपनी रोज की दिनचर्या में कितनी कठिनाई होती है, 3 से 4 घंटे उसे नहाना इत्यादी कामों मे लग जाते है , उसके शरीर का 90% हिस्सा काम नही करता , हम सोच सकते है उसे कितनी तकलीफ होती होगी, पर वो हमेशा हसती रहती है खुशी बांटने मे ही असली सुख है यही उसका मानना है।
ऋचा "विद्यारण्य" और "कृतज्ञता" नामक एन जी ओ के साथ विगत 5 वर्षों से काम कर रही है तथा जरूरतमंद लोगो की मदत करती है, मध्यप्रदेश की एकमात्र मराठी पत्रिका "श्री सर्वोत्तम" की सोशल मीडिया हेड के रूप मे काम करती है। जो समय बचता है उसमें 40 से अधिक बच्चों को ट्यूशन देती है , घूमना , शॉपिंग करना , गोलगप्पे खाना ऋचा को बहोत पसंद है परंतु अपनी तकलीफो के कारण वो ये सब ज्यादा नही कर पाती, लोगों से बाते करना ,दोस्ती करना ये उसका स्वभाव है , वो कहती है ईश्वर ने उसे बहोत अच्छे लोग दियें है इसलिये अब वो भी सभी के लिये अच्छा करना चाहती है , ऋचा अपनी तकलीफो को किसी के साथ नही बांटती , ना ही दिव्यांग होने का फायदा उठाना चाहती है वो किसी से अपनी बीमारी का जिक्र नही करती और हर काम 100% मेहनत से और लगन से करती है । उसका जीवन आज हजारों लोगो की प्रेरणा है , हसती खेलती ऋचा आज हम सबको यही संदेश देती है कि रूको मत चलते रहो , बोलो मत करके दिखाओ , वह पुस्तकों को अपना मित्र मानती है और साहित्य लेखन करती है लघुकथा , कथा , कविता सभी विधाओं मे लिखने का प्रयत्न कर रही है , मराठी भाषा संवर्धन के लिये ऋचा सतत प्रयत्नशील है तथा मध्यप्रदेश मराठी अकादमी व बृहनमहाराष्ट्र मंडल की सक्रिय सदस्य है , इसके साथ ही " टैलेंट फर्स्ट कंसल्टेंट" बैंगलूर इस संस्था के लिये ऑनलाइन सेवाएं भी देती है।
ऋचा का जीवन उन सभी लोगो के लिये प्रेरणा है जो छोटी-छोटी तकलीफों के कारण अपने जीवन से दुखी है, वो हमें ये संदेश देती है कि यदि आपका निश्चय दृढ है तो कोई भी बीमारी आपको हरा नही सकती।
ऋचा दीपक कर्पे के इस अनोखे जीवन को , जीने की जि़द को, जिंदादिल अंदाज को , और सदा मुस्कुराते चेहरे को आज महिला दिवस के दिन ढेर सारी शुभकामनाएं |