शॉर्ट एण्ड क्रिस्प : घर की मुर्गी - A Must Watch

    12-Mar-2020   
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आप सभी को अपना बचपन याद है? बचपन बोलें तो सबसे पहले क्या याद आता है? माँ!! है ना? हमारी पसंद की हर चीज बना कर खिलाने वाली, हर बात का खयाल रखने वाली, दादा दादी की हर छोटी जरूरत का खयाल रखने वाली, पापा की गाडी की चाबी, वॉलेट रुमाल देने वाली, घर का सारा कामकाज संभालने वाली, हर काम खुद करने वाली और दूसरों को आराम देने वाली माँ !!! क्या कभी सोचा है यदि वो घर में ना हो तो घर कैसा रहेगा? खाली.. एकदम वीरान है ना.. लेकिन अक्सर हम घर को संभालने वाली उस माँ, पत्नी और बहू के काम का मोल लगाना भूल जाते हैं, उसकी वॅल्यू करना भूल जाते हैं, जब तक वो ना हो तब तक उसके काम की उसकी मेहनत की अहमियत नहीं समझ पाते | और अक्सर कह देते हैं, तुम काम क्या करती हो? तुम्हारे पास तो कितना समय होता है | पार्लर /क्लास/ बिझनेस ही तो चलाती हो ना, घर से ही काम करती हो ना, इतना तो कर सकती थी | इसी दर्द को बयाँ करने वाली कहानी है “घर की मुर्गी” |

 
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एक मध्यमवर्गीय परिवार | सासू माँ, ससुर जी, पती, दो बच्चे और इस घर को संभालने वाली एक महिला ‘सीमा’ | सुबह दूध लेने से लेकर, नाश्ता बनाना, साँस ससुर को चाय देना, पती के ऑफिस जाने की तैय्यारी करना, बच्चों को स्कूल छोडना, खाना बनाना, पार्लर जाना वहाँ काम करना, बच्चों के घर आने पर उनको खिलाना, होमवर्क कराना, ससुर जी को दवाइयाँ देना, वॉक कराना, पती के दोस्तों की आवभगत करना, और अंत में अकेले ही खाना खा कर सर में खुद ही बाम लगाकर सो जाना, अगले दिन फिर वही कहानी | ऐसी कुछ जिंदगी है सीमा की | घर वालों की ओर से मदद का कोई हाथ आगे नहीं आता, ना पति का ना बच्चों का | 

एक दिन पति के दोस्त घर पर आते हैं, और हँसी मजाक में पतिदेव बोल जाते हैं | “ये आयब्राउज, अप्परलिप्स करने से घर चलने लगा हमारा तो हो चुका फिर |” ये बात पहले से भरी बैठी सीमा के लिये प्रेशर कूकर की सीटी जैसी हो जाती है | उसे इतनी ज्यादा लग जाती है ये बात कि फिर वो तय कर लेती है कि १ महीने के लिये वो अकेली गोवा जाएगी | जब अपने पति से वह ये बात करती है तो पति सवाल करते हैं.. उस पर सीमा जो कहती है वो हर उस ‘होममेकर’ के मन की बात है, जो आजतक शायद कुछ बोल ना पाई हो | वो कहती है “मुझे ब्रेक चाहिये, मैं ब्रेक क्यों नहीं ले सकती? आप सब के आराम का खयाल रखते रखते मैं थक गयी हूँ, पलट कर कोई मुझसे ये तक नहीं पूछता कि सीमा तूने आराम किया या नहीं? आज मैंने घर पे रहने से ब्रेक माँग लिया तो आप सवाल कर रहे हैं?” जहाँ हम ‘वुमन इम्पावरमेंट’ की इतनी बातें करते हैं, क्वीन जैसी मूव्हीज देखते हैं, वहाँ आज एक महिला घर पर रह कर काम करने से ब्रेक माँग कर अकेली छुट्टी मनाना चाहे, वो भी खुद के पैसों से तो उस पर आज भी दस सवाल खडे किये जाते हैं | मिडिलक्लास परिवारों में तो किये ही जाते हैं | 



जब सारे परिवार को उसके निर्णय का पता चलता है, तो सीमा के एक महीना घर में न रहने पर खाना बनाने वाली से लेकर बच्चों की ट्यूशन तक का सारा हिसाब किया जाता है, और तब सबकी आँखें खुलती हैं | आज भी होममेकर्स को वो सम्मान नहीं मिल पाता जो उसे मिलना चाहिये, जिसकी वो हकदार है | सीमा उस घर में है, तभी वो घर घर है | लेकिन  इस शॉर्टफिल्म के अंत के विषय में चर्चा हो सकती है | कुछ लोगों का मानना है, कि सीमा को अकेले १ महीने घूमने जाना चाहिये था, कुछ का मानना है, यही हमारी संस्कृति है कि कोई भी व्यक्ति 'स्वार्थी' नहीं होना चाहिये | फिर वो सीमा हो या उसका पति | 


लेकिन जब भी आप ये देखें, आपकी माँ या आपकी पत्नी को एक बार जाकर ये जरूर बताईये की आपको उनके काम की, उनकी मेहनत की कद्र है | शायद उसे ये चार शब्द ही चाहिये, और कुछ नहीं?  

इस शॉर्ट फिल्म में साक्षी तंवर ने निभाई है | अभी तक इसे १० लाख से भी अधिक लोगों ने देखा है | 'पंगा' जैसी प्रसिद्ध फिल्म के निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी ने इस शॉर्टफिल्म का निर्देशन भी किया है | एक बहुत ही भावुक की ये शॉर्टफिल्म आप सभी को देखनी चाहिये | 

- निहारिका पोल सर्वटे