गल्ली बॉय का गाना 'तू नंगा ही तो आया है क्या घंटा लेकर जाएगा, अपना टाईम आयेगा.." बहुत प्रसिद्ध हुआ सबकी जबान पे चढा... लेकिन जब केसरी फिल्म का गाना 'तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बन के मैं खिल जावां बस इतनी है दिल की आरजू...' सुना तो पूरे भारत की आँखों में पानी आ गया.. लेकिन फिल्मफेअर ने 'बेस्ट लिरिक्स' से गल्ली बॉय के गाने को नवाजा | क्या यह सच्ची देशभक्ती और सच्ची कला का अपमान नहीं?
पिछले कुछ समय से फिल्मफेअर अवॉर्ड्स पर फिर एक बार सवाल खडा किया जा रहा है | क्यूँ? क्यूँ की इस अवॉर्ड फंक्शन में बेस्ट लिरिक्स अर्थात सर्वोत्तम गीत का अवॉर्ड गल्ली बॉय फिल्म के गीतकार अंकुर तिवारी और डिवाइन को मिला | लेकिन कहानी सिर्फ इतनी नहीं है, इस अवॉर्ड के लिये मनोज मुंताशिर लिखित ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’ यह गाना जो कि केसरी फिल्म में लिया गया है, भी नॉमिनेट हुआ था | इस गाने के स्थान पर ‘अपना टाईम आयेगा’ गाने को यह पुरस्कार दिया गया और मनोज मुंताशिर ने ट्विटर पर ऐलान किया कि अब वे किसी भी अवॉर्ड फंक्शन में नहीं जाएँगे, वे अवॉर्ड फंक्शन्स पर बहिष्कार डाल रहे हैं |
उनके इस निर्णय ने फिर एक बार अवॉर्ड फंक्शन्स पर सवाल उपस्थित कर दिये हैं | क्या ये अवॉर्ड सच में गुणवत्ता और टॅलेंट के आधार पर दिये जाते हैं? या इन्हें खरीदा जाता है? एक बार प्रसिद्ध अभिनेता ऋषि कपूर ने स्वयं एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्होंने अवॉर्ड खरीदा है | ऐसे में जो व्यक्ति सच में मेहनत कर रहा है उसकी मेहनत का क्या? ट्विटर पर भी इस विषय में दर्शकों ने नाराजगी जताई है | और तेरी मिट्टी में मिल जावां गाना देशप्रेम के ऊपर है, उसके शब्द अपना टाईम आयेगा इस रॅप से कयी ज्यादा अच्छे हैं यह कहा जा रहा है | और यदी सच में हम दोनों गानें सुनें और दोनों की तुलना करें तो हम भी ये देख सकते हैं कि कौन से गाने के शब्द कितने अर्थपूर्ण है | जब सामान्य व्यक्ति यह तुलना कर सकता है, तो क्या निर्णय समिती में बैठे लोग ये तुलना नहीं कर सकते? आज पूरा देश मनोज मुंताशिर के साथ खडा है | हम फिल्म फेअर अवॉर्ड फंक्शन चाव से देखते हैं, उसके मजे लेते हैं, लेकिन क्या ऐसे अवॉर्ड शो फिल्मों में पल रहे परिवारवाद को बढावा नहीं देते? ऐसे बहुत सारे प्रश्न उपस्थित हो गये हैं |
आमिर खान ने भी अवॉर्ड फंक्शन को बहिष्कृत किया था, और इसके पीछे कारण था रंगीला फिल्म को एक भी अवॉर्ड ना मिलना और सारे अवॉर्ड्स ‘दिल वाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे’ फिल्म को मिलना | १९९४ में जूही चावला को हम हैं राही प्यार है फिल्म के लिये सर्वोत्तम अभिनेत्री का फिल्मफेअर पुरस्कार मिला, लेकिन उसी वर्ष आयी फिल्म ‘दामिनी’ के लिये मिनाक्षी शेषाद्री को प्रशंसा के दो शब्द भी इस अवॉर्ड शो में नहीं मिले | यह तो भेदभाव ही हुआ ना?
इसके अलावा ऐसे कयी उदाहरण है | गल्ली बॉय एक बहुत ही अच्छी फिल्म है, इसमें कालकारों ने अभिनय भी बहुत ही अच्छा किया है, स्टोरी भी बहुत अच्छी है | लेकिन जब आप तुलना करते हैं तो आप स्वयं यह देखते हैं कि अपना टाईम आयेगा और तेरी मिट्टी में मिल जावां में से किस गीत के शब्द अधिक प्रभावी हैं | ऐसी घटनाएँ इतने प्रसिद्ध और नामचीन अवॉर्ड्स पर एक प्रश्नचिन्ह लगा देती हैं | इंटरनेट पर #BoycottFilmFare ये हॅशटॅग भी काफी प्रसिद्ध हो रहा है |
मनोज जैसे कयी लोग हैं जिन्हें इस प्रकार के अवॉर्ड फंक्शन्स पे भरोसा नहीं है | शायद अब सामान्य जनता और दर्शकों का भी विश्वास ऐसे ढकोसलों से उठ जाए…
- निहारिका पोल सर्वटे