शास्त्री जी दो बार मारे गये...


 

 



आज लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती है | हाँ मैं यह नहीं कहूंगी की उनकी ‘भी’ जयंती है | हर बार दो अक्टूबर को दुनिया गाँधी जी की जयंती मनाती है, और शास्त्री जी को हमेशा दूसरा स्थान मिलता है, लेकिन आज नही. आज बात केवल स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, जय जवान जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी की होगी | आज शास्त्री जी की जयंती है, और इस उपलक्ष्य में एण्ड टीव्ही पर ताश्कंद फाइल्स दिखाई जा रही है | एक ऐसी फिल्म जो सबको देखनी ही चाहिये | आज तक जो इतिहास हम पढते आये हैं, उसकी पोल खोलने वाली एक सच्चाई | 

इस फिल्म का एक डायलॉग है “हमनें शास्त्री जी को दो बार मारा, एक बार ताश्कंद में और दूसरी बार सिस्टीमेटकली हमारी देश की याददाश्त में से मिटाकर” ये संवाद कितना सच है | कितना कडवा लेकिन कितना सच | आज हममें से कयी लोगों को पता ही नहीं की शास्त्री जी का जन्म आज के ही दिन हुआ था | शास्त्री जी ताश्कंद एक सौदा करने गये और कभी लौटकर ही नहीं आये, क्यूँ नहीं आए क्या हुआ था, उनको हार्ट अटैक आया था कि उन्हें जहर दिया गया था ? यह आज तक समझ नहीं आया, लेकिन प्रश्न यह है कि यह फिल्म आने के पहले तक यह बात किसके लिये महत्वपूर्ण थी | आप हम जैसे युवाओं की रोजमर्रा की जिंदगी में क्या इससे फरक पडता था ? उत्तर है नहीं |
 
 


इस फिल्म का एक संवाद यह भी है कि कमिटी का एक मेंबर बोलता है “यह देश गांधी नेहरु का देश है” तब कमिटी की दूसरी मेंबर पत्रकार प्रश्न उठाती है “शास्त्री जी का क्यूँ नहीं?” क्या यह सवाल हमें चुभता नहीं? मुझे याद है शुरु से आज तक स्कूल में कॉलेज में और बाद में पत्रकारिता के क्षेत्र में भी गांधी नेहरु ये नाम हर बार सुनाई देते हैं लेकिन लाल बहादुर शास्त्री, वीर सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम खो जाता है या शायद “सिस्टीमेटिकली” भुला दिया जाता है | 

यहाँ गाँधी या नेहरु का विरोध नहीं है, लेकिन शायद उन्होंने इस देश के लिये जो किया, उससे कही ज्यादा योगदान औरों ने दिया लेकिन उन्हें उसका क्रेडिट जितना देना चाहिये उतना दिया नहीं जाता | आज इतिहास कुछ और होता यदि शास्त्री जी हमारे पहले प्रधानमंत्री होते, यदि ताश्कंद में उनकी रहस्यमयी मृत्यु ना हुई होती, यदि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी मौत नहीं हुई होती | यदि देश का पहला नेतृत्व किसी और के हाथों में होता | आज का युवा जान बूझ कर लादा गया इतिहास नहीं सुनना चाहता, जिस तरह इस फिल्म में दिखाया गया है कि, आज का युवा सच्चा इतिहास जानना चाहता है, उनके योगदान के बारे में जानना चाहता है जिन्होंने सच में देश के हित में कार्य किया और अपनी जान दी | 

आज शास्त्री जी की जयंती के उपलक्ष्य में उन्हें हम वो क्रेडिट देना चाहते हैं, जिसके वे सदैव हकदार रहे हैं | ताश्कंद में क्या हुआ, उनकी रहस्यमयी मृत्यु कैसे हुई ? और उस वक्त के प्रशासन ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया यह प्रश्न आज भी उतने ही ताजा हैं | नया भारत बन रहा हैं, नये भारत की नयी पिढी सच्चे इतिहास को और सच्चे देशभक्तों के कार्यों को जानने की हकदार है | और सच्चे देशभक्त इस नयी पिढी से वह सम्मान पाने के भी हकदार हैं | चलिये तो आज शास्त्री जी के सपनों के भारत को बनाने के लिये उन्हें याद करें और उन्हें वो सम्मान दें जिनके वे हकदार हैं | 

- निहारिका पोल सर्वटे